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, पौराणिक कथा ...पुराने लोग बताते हैं कि पहले गांव में किसी की बारात आती थी या गांव से कहीं बारात जाती थी तो बारात में एक दो "बुद्धिजीवी" जरूर रखे जाते थे। क्योंकि आमतौर पर द्वारपूजा के बाद शास्त्रार्थ होने लगता था। वर और वधू पक्ष के बुद्धिजीवी बैठकर बहस करते और सभी बाराती और घाराती चारो ओर बैठकर सुनते थे। बहस की हार जीत उस गांव की इज्जत का सवाल हुआ करती थी।उसी दौर में एक बार एक गांव में बारात आयी। बारात में शहर से अँग्रेजी पढ़ कर एक बाबू मोशाय भी पधारे थे, जिनके बारे में मशहूर था कि वह अपनी अँग्रेजी में की गयी जिरह बहस से सबको चित कर देते थे। गांव वाले घारातियों को जब यह बात पता चली तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। क्योंकि उस दिन गांव के एकमात्र अँग्रेजी बोलने वाले मास्टर साहब शहर गये हुये थे।अपनी संभावित हार के बारे में सोचकर सभी मायूस हो गये। फिलहाल किसी तरह मुँह छिपाते हुये द्वारपूजा की रस्म पूरी की गयी। इसके बाद बारात जनवासे में लगे शामियाने में आकर बहस के लिये वधू पक्ष के बुद्धिजीवी का इन्तजार करने लगे।जबकि घारातियों में मास्टर साहब के न होने के कारण उदासी पसरी हुई थी। सभी लोग एक दूसरे का मुँह देख रहे थे और उधर बाराती ललकार रहे थे कि कोई अगर है बहस करने वाला तो सामने आये। लेकिन गांव वालों के पास उनकी ललकार का कोई जवाब नहीं था।तभी मुखिया जी अपने भतीजे को ललकारते हुये चिल्ला उठे कि- हरे संटूआ.....!कहां हए रे? ससुरा कवा सैकड़न रूपये फीस भरकर अँग्रेजी वाले स्कूल में पढ़ाता हूँ , इसीलिये कि मौके पे काम आ सके।कहां है..... जल्दी आ इधर...... चल मेरे साथ।दिनभर मेरे सामने अँग्रेजी में गिटिर-पिटिर करता है, आज चल के बोल अँग्रेजी।पहले तो संटूआ सकुचाया, क्योंकि उसे अँग्रेजी के essay और poem के अलावा कुछ याद नहीं था।लेकिन गांव वालों की हसरत भरी निगाहों से उसे देखने के कारण अपने बचने को कोई चारा नहीं दिखाई दिया। सकपकाते हुये वह तैयार हो गया और बोला कि चलिये...आज उनकी भी अँग्रेजी देख ली जाय।संटूआ को लेकर सभी लोग शामियाने में आ गये और सामान्य परिचय के बाद बहस शुरू हुई। सबसे पहले बारात पक्ष के अँग्रेजी जानने वाले बुद्धिजीवी ने प्रश्न पूछा कि-"What you think about democracy and social change in India?"पहले तो संटूआ को प्रश्न ही नहीं समझ में आया।आखिर पांचवीं जमात में पढ़ने वाला बेचारा संटूआ इसे कैसे समझता। लेकिन इधर उधर देखा तो पता चला कि सभी बारातियों सहित गाँव वालों की भी निगाहें उसी पर अटकी हैं। अब मरता क्या न करता। खूब जोर लगाकर चिल्लाते हुये बोल पड़ा-"twinkle twinkle little star",how i wonder what you are.up above the world so high,like a diamond in the sky"इतना सुनते ही सभी गांव वाले वाह-वाह कहते हुये ताली पीटने लगे। लेकिन बारात पक्ष के बुद्धिजीवी कहने लगे-No...no......no....this is not a right answer.... my question about Democratic and social changes in India.इसके बाद फिर से सभी गांव वाले संटूआ की ओर देखने लगे। संटूआ को तो यहाँ कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।पूरी तरह किंकर्तव्यविमूढ था। लेकिन इस बार उसने दुगुने उत्साह से बोलना शुरू किया" India is my country and all Indians are my brothers and sisters.I love my country and I am proud of its rich and varied heritage.I shall always strive to be worthy of it.इसके बाद तो गांव वालों ने भी दोगुने जोश से ताली बजाते हुये संटूआ की वाहवाही की।इसके बाद बारात वाले अँग्रेजी बोलने वाले बुद्धिजीवी जितना बोलते उसके जवाब में संटूआ कोई न कोई poetry या essay सुना देता।गांव वाले ताली पीटते और बुद्धिजीवी अपने सिर के बाल नोचते।अन्त में हारकर उन्होंने सवाल पूछना ही बंद कर दिया और खीझते हुये गांववालों को इडियट नानसेंस बनाते उठ कर चले गये.... गांव वालों ने खूब ताली बजायी और संटूआ को कँधे पर बैठा बारातियों को चिढ़ाते हुये घर लौट आये।ठीक वही हाल बीते दिनो से..देश में देखने को मिल रहे है ।कृषि बिल पर भाजपा नेतृत्व ने पूरे विस्तार से समझाया है ।लेकिन.... संटूआ टाइप राहुल गांधी फिर भी अपने... "twinkle twinkle little star", यानि कि कृषि बिलों को पकडे बैठे है ।बाकी..... घरातियों की तरह उन्हें कंधे पर बैठाकर दूसरों को चिढ़ाते हुये शाबासी दे रहे कि वाह बेट्टा... वाह बेट्टा... संटूआ बहुत खूब खूब बोले। और संटूआ उन सबको देख कर "आँख मारता" है।।।इति संटूआ प्रकरणम् सम्पूर्णम।।

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