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Spherical astronomyBy philanthropist Vanita KasaniRead in another languageTake careEditSpherical astronomy or positional astronomy

गोलीय खगोलशास्त्र (spherical astronomy) या स्थितीय खगोलशास्त्र (positional astronomy) खगोलशास्त्र की वह शाखा है जिसमें खगोलीय वस्तुओं का किसी विशेष समय, तिथि या पृथ्वी पर स्थित स्थान पर खगोलीय गोले में स्थान अनुमानित करा जाता है। यह अध्ययन की शाखा गोलीय ज्यामिति के सिद्धांतों व विधियों और खगोलमिति की मापन-कलाओं पर निर्भर है। ऐतिहासिक दृष्टि से गोलीय खगोलशास्त्र को पूरे खगोलशास्त्र की प्राचीनतम शाखा माना जा सकता है क्योंकि धार्मिकज्योतिषसमयानुमान और दिक्चालन (नैविगेशन) कार्यों के लिये मानव आकाश में तारोंतारामंडलोंग्रहोंसूर्य व चंद्रमा की स्थिति को ग़ौर से जाँचता-समझता रहा है। अकाश में खगोलीय वस्तुओं के स्थानों को गणितीय रूप से समझने के विज्ञान को खगोलमिति (astronomy) कहते हैं।[1]

काल्पनिक खगोलीय गोले में घूर्णन करती पृथ्वी। चित्र में तारे (श्वेत), सूर्यपथ (लाल) और भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली की दाएँ आरोहण व दिक्पात की रेखाएँ (हरी) दिखाई गई हैं।
खगोलीय गोले के बाहर से दायाँ आरोहण (right ascension, नीला) व दिक्पात (declination, हरा)

निर्देशांक प्रणालियाँ संपादित करें

गोलीय खगोलशास्त्र के प्राथमिक तत्व निर्देशांक प्रणालियाँ (coordinate systems) और समय हैं। अकाश में वस्तुओं के निर्देशांक भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली के अनुसार तय किये जाते हैं जिसमें पृथ्वी की भूमध्य रेखा को कल्पित रूप से उभारकर खगोलीय गोले पर भी खेंचा जाता है। इस प्रणाली में किसी भी आकाशीय वस्तु का स्थान उसके दाएँ आरोहण (α, right ascension) और दिक्पात (δ, declination) से निर्धारित हो जाती है। फिर अक्षांश (लैटिट्यूड) और समय के प्रयोग से उस वस्तु का क्षितिजीय निर्देशांक प्रणाली में स्थान अनुमानित करा जा सकता है, जो ऊँचाई (altitude) और दिगंश (azimuth) नामक दो राशियों द्वारा व्यक्त करा जाता है।[2]

सूचीपत्र, पंचांग व 

बाल वनिता महिला आश्रम

तारामंडलसंपादित करें

किसी वर्ष की तारों व गैलेक्सियों जैसी खगोलीय वस्तुओं के निर्देशांकों की तालिका तारा सूचीपत्र (star catalog) में मिलती हैं। अयन (precession) और डोलन (nutation) के प्रभाव समय के साथ-साथ इन निर्देशांकों को धीरे-धीरे बदलते रहते हैं और इसलिए कालक्रमानुसार नये तारा सूचीपत्र प्रकाशित करे जाते हैं। सूरज और ग्रहों की आकाश में स्थिति निर्धारित करने के लिये पंचांग (ephemeris) प्राचीनकाल से ही बनते आ रहे हैं, जिनमें यह लिखा जाता है कि किसी विशेष समय पर कोई खगोलीय वस्तु आकाश में किस स्थान पर नज़र आएगी।

मानव आँख बिना किसी दूरबीन के लगभग ६००० तारे पहचानने में सक्षम हैं जिनमें से आधे किसी भी समय पर क्षितिज के नीचे और दृष्टि से बाहर होते हैं। आधुनिक तारा-तालिकाओं में खगोलीय गोले को ८८ तारामंडलों में बांटा गया है और हर तारा किसी तारामंडल क्षेत्र का हिस्सा बनाया गया है। आधुनिक काल में ध्रुव तारा (Polaris) हमेशा ही पृथ्वी उत्तरी ध्रुव के लगभग ऊपर स्थित होता है।[3]

इन्हें भी देखेंसंपादित करें

सन्दर्भसंपादित करें

  1.  Robin M. Green, Spherical Astronomy, 1985, Cambridge University Press, ISBN 0-521-31779-7
  2.  William M. Smart, edited by Robin M. Green, Textbook on Spherical Astronomy, 1977, Cambridge University Press, ISBN 0-521-29180-1
  3.  "Universe," William J. Kaufmann and Roger A. Freedman, W.H. Freeman & Company, 1999, ISBN 96734956... Actually, the unaided human eye can detect only about 6000 stars ... The entire sky is divided up into a total of 88 constellations of different shapes and sizes ...

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